Thursday, April 28, 2011

जब आये थे तुम ज़िन्दगी में मेरी,
मै थी गुमसुम किसी के इंतज़ार में,
पुछा था तुमने - ' अगर चला गया 
वो आपको छोड़ कर, कितने टुकड़े
होंगे आपके दिल के ? ' 
कहा मैंने - ' चकनाचूर हो जायेगा '
तुमने कहा - " मैं इकट्ठा करूँगा झाड़ू लगाकर
उस चकनाचूर दिल को, फिर पिघलाऊंगा उसे,
सांचे में ढाल कर वापस कर दूंगा, 
फिर से धड़कने के लिए ".
किया भी -- तुमने इकट्ठा मेरे उस दिल के चूरन को,
पिघलाया भी और डाल दिया 
अपना दिल भी उसी में पिघलाकर,
चुपके से - बिन बताये.
सांचे में ढाला और कर दिया वापस.
मैंने भी अपना लिया उस दिल को
जिसका आधा हिस्सा तुम थे.
पता ही नहीं चला की कब 
मेरे दिल में तुम धड़कने लगे.

आज उसी को तोड़ कर ले गए,
उस आधे को अपना समझकर,
पर भूल गए इक बात--
कि वो जो ले गए हो तुम,
उसमे आधी गयी हूँ मैं.
और जो रह गया है मेरे पास,
उसमे आधे पड़े हो तुम.



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