Wednesday, December 28, 2011

Lamhe

मुड़ मुड़ कर फिर हस्ते हम पर वो बीते लम्हे खुशियों वाले..
मुश्किल आज पल पल का बोझ उत्ठाना है.
कदम हैं भारी, मस्तिष्क दिशाहीन,
बढें भी तो किस ओर चलें अब,
एक राह पकड़ नैया को पार लगाना है.

धुंधली धुंधली राहें सारी,
स्थिर नज़र के सामने आकर,
छुओ तो झिलमिल हिल जाती,
कसूर इन्हें बनाने वाले का नहीं,
ये तो अपने ही बहते अश्कों का नज़राना है .

Sunday, May 29, 2011

इस कदर चाहा तुझे,
कि मेरा प्यार इबादत बन गया.
और इस शिद्द्त से पूजा की तेरी,
कि आज मेरी पूजा के आगे-
मेरा भगवान छोटा पड़ गया.

Saturday, May 28, 2011

ये इंसानी दिल ही तो है,
जिसने प्यार करना सीखा था.
फिर ये आंसू क्यों आते हैं,
क्या इसका रंग इतना फीका था.
ये ज़िन्दगी कहीं नीरस न हो-
इसलिए अपने अरमानो को हम सिकोड़ते नहीं.
सामने है ये दलदल की शैय्या,
जिस पे हम सोने चले.
क्या करें हैं वो भी तो कुछ ऐसे 
जो वक़्त की कलाई मरोड़ते नहीं.


Saturday, May 14, 2011

It needs rest, a moment to relax
and turn back,
and return to cherish
the dear, tender love of the past.
a past which stores a life,
a time when I was alive.

Lucky to have it,
a chance of a life time,
the ladder of pain to climb
a rapier stabbed to the sacred,
a mystic beauty with aching scar.

Unfortunate, being dead,
living like machines
lost somewhere inside,
never to be found again,
still there, very aware
brain and heart working
at two different levels -- beware.

Wednesday, May 4, 2011

मैं

मुझमे एक ठहराव  है,
कुछ  बहता सा ठहराव,
कभी उठता है, कभी गिरता  है,
कभी मद्धम है, कभी जलता है.

शायद कुछ कहना चाहता है,
लगता है मेरे अंदर रहना चाहता है.
मुझे खुद मुझसे मिलाने की हसरत है उसकी.
हर डगर-नगर मेरे साथ है वो.
हर सफ़र-सहर मेरे साथ है वो.
अब सपना मंजिलों का नहीं,
रास्तों का है ...
कल तक जो आंसू दर्द की पहचान थे...
अब वही मीठी मुस्कान हैं.
ये नशा दर्द का जीवन दान बना.
एक शरीर और एक मन था,
शरीर आज भी है ..
मन का कन्यादान हुआ,
जीवन ने मृत्यु को किया --
ये मेरा ब्याह आध्यात्म से हुआ.

Thursday, April 28, 2011

जब आये थे तुम ज़िन्दगी में मेरी,
मै थी गुमसुम किसी के इंतज़ार में,
पुछा था तुमने - ' अगर चला गया 
वो आपको छोड़ कर, कितने टुकड़े
होंगे आपके दिल के ? ' 
कहा मैंने - ' चकनाचूर हो जायेगा '
तुमने कहा - " मैं इकट्ठा करूँगा झाड़ू लगाकर
उस चकनाचूर दिल को, फिर पिघलाऊंगा उसे,
सांचे में ढाल कर वापस कर दूंगा, 
फिर से धड़कने के लिए ".
किया भी -- तुमने इकट्ठा मेरे उस दिल के चूरन को,
पिघलाया भी और डाल दिया 
अपना दिल भी उसी में पिघलाकर,
चुपके से - बिन बताये.
सांचे में ढाला और कर दिया वापस.
मैंने भी अपना लिया उस दिल को
जिसका आधा हिस्सा तुम थे.
पता ही नहीं चला की कब 
मेरे दिल में तुम धड़कने लगे.

आज उसी को तोड़ कर ले गए,
उस आधे को अपना समझकर,
पर भूल गए इक बात--
कि वो जो ले गए हो तुम,
उसमे आधी गयी हूँ मैं.
और जो रह गया है मेरे पास,
उसमे आधे पड़े हो तुम.



Tuesday, April 26, 2011

Instead of mourning for the dawn, make way for the twilight at the horizon...

Thursday, April 21, 2011

Leave Request


God has given us very few options to live with. At times, there is no other way but to continue our lives with just whatever is already with us. Sometimes I wish we could be granted leaves in our lives the way we accrue them in our jobs. Since childhood, we humans are habitual of availing leaves as per our convinience just by applying and asking for permission. When we are in school, if because of certain reasons we don't wanna attend classes, all we have to do is send a leave application. In college, we don't even need to do that.. just bunk. When we are grown up enough to start working and are in a similar situation, we have to apply for leaves in advance, at times we don't get leaves as per our requirements but most of the times we do.

But none of these occurs in case of 'LiFe'. If ever in life we feel too tired to live anymore, we don't have an option of going back to heaven, take rest for a while, come back and resume our daily routine as usual. Neither can we bunk for 2-3 days and enter the race again. This certainly is a funny world. And God definitely is crazy enough to create us-Human Beings. And we humans being weird and strange at times, definitely do stranger things-committ suicide.

I just have a nano-request to God. Do create such a facility of availing leaves for us. Or at least for me. So that I can take a break for 5-10 years and join back again when I feel good enough.
मै भी दौड़ रही हूँ
और ये वक़्त भी दौड़ रहा है,
पैर थक चुके हैं 
और रास्ता खत्म नहीं होता..,
खुद को छोड़ आई कहीं पीछे
जो तलाश करने पर भी दिखाई नहीं पड़ता..

दोनों हांथों में इक उम्मीद लिए फिर रही हूँ,
शायद अगले मोड़ पर मुलाकात हो जाये -- खुद से.
चाहती हूँ आँखें मूँद लूँ कुछ पल के लिए,
एक अन्धविश्वास है मन में --
की जब खुलेगी आँख फिर से
सवेरा नज़र आएगा.
आँखों से बहते आंसुओं के थमने से पहले,
ये सासें नहीं थमेंगी .

Saturday, April 16, 2011

कुछ दायरों ने घेर रखा है,
हम सब को;
महसूस तो कर सकती हूँ मै,
कुछ अनजाने लोगों की तकलीफ
पर कुछ कर नहीं सकती.
शायद हक नहीं है मेरा,
किसी पराये के दुःख दर्द बाटने का.

क्यूँ कुछ लोग अपने होते हैं,
और कुछ पराये?!

जो पराये हैं, क्यूँ वो अपने नहीं बन सकते--?
कितना फर्क है .. इस मुस्कराहट और उस मुस्कराहट में..
ये मुस्कराहट-- आँखों से दिल में झाँक कर कहती है -
मै साथ हूँ, हमेशा !!

और वो मुस्कराहट-- क्यों कुछ पलों में
साथ छोड़ कर आगे निकल जाती है..