मुड़ मुड़ कर फिर हस्ते हम पर वो बीते लम्हे खुशियों वाले..
मुश्किल आज पल पल का बोझ उत्ठाना है.
कदम हैं भारी, मस्तिष्क दिशाहीन,
बढें भी तो किस ओर चलें अब,
एक राह पकड़ नैया को पार लगाना है.
धुंधली धुंधली राहें सारी,
स्थिर नज़र के सामने आकर,
छुओ तो झिलमिल हिल जाती,
कसूर इन्हें बनाने वाले का नहीं,
ये तो अपने ही बहते अश्कों का नज़राना है .
मुश्किल आज पल पल का बोझ उत्ठाना है.
कदम हैं भारी, मस्तिष्क दिशाहीन,
बढें भी तो किस ओर चलें अब,
एक राह पकड़ नैया को पार लगाना है.
धुंधली धुंधली राहें सारी,
स्थिर नज़र के सामने आकर,
छुओ तो झिलमिल हिल जाती,
कसूर इन्हें बनाने वाले का नहीं,
ये तो अपने ही बहते अश्कों का नज़राना है .