Thursday, April 21, 2011

मै भी दौड़ रही हूँ
और ये वक़्त भी दौड़ रहा है,
पैर थक चुके हैं 
और रास्ता खत्म नहीं होता..,
खुद को छोड़ आई कहीं पीछे
जो तलाश करने पर भी दिखाई नहीं पड़ता..

दोनों हांथों में इक उम्मीद लिए फिर रही हूँ,
शायद अगले मोड़ पर मुलाकात हो जाये -- खुद से.
चाहती हूँ आँखें मूँद लूँ कुछ पल के लिए,
एक अन्धविश्वास है मन में --
की जब खुलेगी आँख फिर से
सवेरा नज़र आएगा.
आँखों से बहते आंसुओं के थमने से पहले,
ये सासें नहीं थमेंगी .

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