Tuesday, April 12, 2011


कुछ करुण स्वर , जो दबे हैं कहीं भीतर
आज चाहते हैं 'बिखरना',
वो नयन के नीर जो नमी देते हैं पथरायी आँखों को, 
आज चाहते हैं सवरना;
ये स्थिर शांत से कदम क्यूँ चाहते हैं बेहेकना !!
आज मेरी सिसकियों में पायल की झंकार है,
क्या मेरी आहों में बैठा कोई फनकार है..? 


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